आपदा

हम बोलदि रया गैल्यों, हम लिखदि रौला क्वी सुणु न सुणू गैल्यों, धै लगौंदि रौला

श्रीकंठ बेस को केस स्टडी बनाइए …………………..
धराली आपदा के कारक काफी कुछ स्पष्ट हो चुके हैं। एसडीआरएफ और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की टीम के जो वीडियो सामने आए हैं, उनसे आम लोगों की भी कुछ समझ बनी होगी।
लेकिन इससे कुछ और सबक भी लिए जाने की जरूरत है, जैसे कि –
1. इसके आधार पर खासकर उत्तराखंड में कुछ और ऐसे संवेदनशील ग्लेशियर डिपॉजिट को चिन्हित किया जा सकता है।
2. खीर गंगा की काफी चर्चा हुई, लेकिन उस तिलना गाड की कम हुई, जिसने आर्मी कैंप के अलावा हरसिल को भी खतरे में डाल दिया था। यह खतरा आगे भी बरकरार रहेगा।
3. कुछ सवाल श्रीकंठ बेस को लेकर अभी और भी हैं। श्रीकंठ बेस से जो ग्लेशियर डिपॉजिट नीचे बहा, वह एकदम से ग्लेशियर के मुहाने से लगा हुआ है। यह डिपॉजिट नीचे आने से क्या अब ग्लेशियर की स्थिरता भी खतरे में पड़ गई होगी। ग्लेशियर का भी एक बेस होता है।
3. क्या ग्लेशियर बेस के डिपॉजिट के तीन जगह से बह जाने के कारण ड्रेनेज में कुछ बदलाव आएगा ?
4. जिस डुडू गाड का जिक्र एसडीआरएफ के वीडियो में हुआ है, उस तरफ के ग्लेशियर की स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा ?
4. खीर गंगा, डुडू गाड और तिलना गाड का ऊपरी उद्गम एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। डुडू गाड में 5 अगस्त को ज्यादा पानी नहीं आया लेकिन अगली बार खतरा उस पर नहीं होगा, कहा नहीं जा सकता।
6. यूं समझिए कि श्रीकंठ ग्लेशियर के अस्तित्व पर भी आगे खतरा हो सकता है। भारी बरसात का जो दबाव अभी 4800 मीटर पर था वह अगली बार 5000 या 5200 मीटर पर भी हो सकता है, जहां कि ग्लेशियर है।
7. 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद चोराबाड़ी ग्लेशियर के निकट एक मॉनिटरिंग कैंप बना है, ऋषि गंगा की बाढ़ के बाद जो कैंप बनने की खबरें थी वह बना या नहीं कोई जानकारी नहीं। क्या इसी तरह एक दिन खीर गंगा के इस उद्गम को भी भुला दिया जाएगा ……?
अपने कुछ साथियों का कहना है कि नेगी जी क्यों लिख रहे हो ? कौन सुनता है,? कौन पढ़ता है ? कौन समझेगा? इस पर मेरा कहना है कि यदि गिर्दा आज होते तो उनसे निवेदन करते कि अपने गीत में दो लाइन यह भी जोड़ दिजिए –
हम बोलदि रया गैल्यों, हम लिखदि रौला
क्वी सुणु न सुणू गैल्यों, धै लगौंदि रौला
फोटोग्राफ साभार – एसडीआरएफ की टीम द्वारा बनाए गए वीडियो से तैयार किए गए हैं।

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