देहरादून। आज बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस दिग्गज हरीश रावत ने सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट में खासा तंज कसा। प्रभू श्री राम उन्हें अयोध्या का न्योता देने खुद उनके सपने में आए। सवाल राजनीति से जुड़ा था क्योंकि श्री राम मंदिर को लेकर अक्षत घर घर पहुंचाने के मामले में संघ व अन्य सहयोगी संगठनों ने जिस तरह से कमान संभाली है वह पूरी तरह से लोक सभा चुनाव की तैयारी है। बाद में भले ही कोरोना ही क्यों न आ जाए.। फिर किसी को ऐसा मौका नहीं मिलेगा। सोशल मीडिया में हरीश रावत ने जो लिखा वह इस तरह से है….
——–” राजा रामचंद्र की जै”——-
कल रात मुझे ऐसा लगा जैसे प्रभु श्री राजा राम मेरे सिरहाने बैठे हैं और मुझसे कह रहे हैं कि अयोध्या में मेरे रामलला विराजमान विग्रह के दर्शन करने जरुर पहुंचना। मैंने उनसे कहा कि भगवन मेरी भी हार्दिक इच्छा है, जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय दिया तो मैंने उत्साहित भाव से कहा कि मैं भी अयोध्या जाऊंगा और मैं अयोध्या जाना चाहता हूं, कब उपयुक्त रहेगा ! उन्होंने कहा रामनवमी के आस-पास कभी वहां दर्शन के लिए जरूर जाओ और मैं अचकचाकर के उठ कर बैठ गया और मेरे मन में कई तरीके के भाव व प्रसंग उमड़-घुमड़ कर आगे आने लगे। मैंने अपने उद्वेलित मन को समझाया और कहा कि अब तो अयोध्या जाना है, हमारे आराध्य देव का आदेश हो चुका है, इस आदेश के साथ मैं उन करोड़ों भारतवासियों की भावना का हिस्सा बनूंगा जो अपने आराध्य के मूर्ति रूप में अयोध्या में दर्शन करेंगे। मैं मूर्ति रूप इसलिये कह रहा हूं राम, भारत के लोगों के दिल में हमेशा-हमेशा वास करते हैं। प्रत्येक भारतवासी के दिल में मर्यादा पुरुषोत्तम न्याय के न्याय कारी, कल्याणकारी राजा के रूप में वास करते हैं और इसमें धर्म, क्षेत्र, जाति का बंधन नहीं है, गरीब-अमीर का भी बंधन नहीं है। अमीर जरा अपने उत्साह को दिखा सकता है और गरीब दिल में अपने उत्साह को रखता है, मगर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी सबके दिलों में वास करते हैं। हिंदू और मुसलमान, सिख, जैन, बौद्ध, इसाई आदि अपने-अपने तरीके से राजा श्री रामचंद्र जी में आस्था रखते हैं। मुसलमान भी उनको अपना पूर्वज मानते हैं। मैं ऐसे बहुत सारे मुसलमान भाइयों को जानता हूं जो रघुवंशियों के साथ अपनी वंशावली को जोड़ते हैं। क्योंकि मैं भी रघुवंशी वंशावली से हूं, इसीलिये हम राम के बजाय राजा रामचंद्र की जय कहते हैं, तो वह लोग भी राजा रामचंद्र की जय कहते हैं, क्योंकि वह उनको अपने कुल के एक महान आराध्य पुरुष राजा के रूप में देखते हैं। इसी भावना से प्रेरित होकर बाद में राह भटक गये अल्लामा इकबाल ने कहा था कि राम इमामे हिंद हैं।
यदि आज हम विशुद्ध रूप से राम मय भावना से विश्लेषण करें तो देश के अंदर राम एक ऐसा आधार स्तंभ प्रदान करते हैं जिन पर सबका भरोसा है, हमें इस भरोसे को बढ़ाना चाहिए, न कि अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए भटकाव पैदा करना चाहिए। किसी की भी कोशिश, इस भरोसे को कमजोर करने की नहीं होनी चाहिए। कितना अच्छा हो कि हम उनको अपनी सामुहिक समझ और सोच का स्तंभ मान लें। राजनीति दलगत होती है, क्योंकि संसदीय प्रणाली में दल ही संसद और सरकार बनाते हैं। हम यदि दलगत राजनीति में राम को लपेटने की कोशिश करेंगे तो हम उनके उस सर्वग्राही मूर्ति वाणी विग्रह के साथ अन्याय करेंगे। हमारी श्रद्धा दिखावा हो जायेगी। यदि हमारी श्रद्धा वास्तविक है तो हमको राम को अपने स्वाभाविक रूप में लोगों को स्मरण करने देना चाहिए। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी। यूं तो राम सबके प्राण हैं, मगर संस्कारिकता/सांसारिकता का तकाजा है कि श्री राम की बाल विग्रह मूर्ति में भी प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन होगा, यह हमारे सनातन परंपरा का हिस्सा है। मैं इस अवसर को भी प्रणाम करता हूं, नमन करता हूं और जब अयोध्या में भीड़भाड़ की स्थिति सामान्य होने लगेगी तो राजा रामचंद्र जी के आदेशानुसार उनके दर्शनों के लिए मैं अयोध्या जरूर जाऊंगा।
अंत भला सो भला, अयोध्या जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मस्थली है, वहां उनका मंदिर बने यह सनातन आकांक्षा रही है। आक्रांताओं का स्वभाव रहा है कि उन्होंने जन विश्वास को तोड़ने के लिए मंदिरों व पूजा स्थलों को अपना निशाना बनाया। बाबर और उनके साथ आए हुए लोग भी आक्रांता थे। जब तक आक्रांता स्वभाव रहा मंदिर बनाने के लिए जो लोग भी आगे आए उनको अपने बलिदान से रामाभिषेक करना पड़ा, हजारों लोगों ने उस कालखंड में अपना बलिदान दिया, मैं उनके त्याग को प्रणाम करता हूं। बाबर के पौत्र अकबर ने इस स्थिति को थामा और वहां उस जन्म स्थल पर छोटा मंदिर बनाने की अनुमति दी। दुर्भाग्य से अकबर के प्रपौत्र औरंगजेब ने फिर से मंदिरों का खंडन प्रारंभ किया और उसके साथ ही मुगल साम्राज्य के पतन की नींव की शुरूआत हो गई, सम्राट वही है जो सबका विश्वास जीतेगा। औरंगजेब ने उस विश्वास को खंडित किया और मूल्य, मुगल साम्राज्य को चुकाना पड़ा। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि आजादी के बाद निरंतर प्रयास हुए कि इस मामले व प्रसंग को किसी तरीके से सुलझा लिया जाए। आखिर जिन्होंने इस इमारत में मूर्ति रखने की इजाजत दी होगी, वह भी तो कोई लोग ही होंगे, उनकी भी तो कुछ समझ रही होगी! विवाद बढ़ता हुआ देखकर ताला लगा, फिर ताला खुलवाया गया। फिर भू आवंटन कर शिलान्यास करवाया गया। राम राज्य के उद्घोषणा की घोषणा भी हुई तो कहीं न कहीं इन सबमें श्री राम प्रति कोई श्रद्धा का भाव तो रहा ही होगा। समय का चक्र मर्यादा सूचक होता है और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मंदिर का निर्माण विवाद व क्लेश से नहीं होना चाहिए, इसे समय ने सुनिश्चित किया। मंदिर का निर्माण मर्यादा के अंतर्गत होना चाहिए और इसीलिये समय चक्र ने सुप्रीम कोर्ट को आगे किया और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक सर्वसम्मत निर्णय दिया, उस ऐतिहासिक निर्णय के साथ केवल हिंदुओं का नहीं बल्कि 140 करोड़ से ज्यादा भारत वासियों के आस्था का मंदिर बना। हमें इस तथ्य को स्वीकार करना पड़ेगा कि मंदिर तो उस दिन ही बन गया जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया और उस निर्णय को हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, बौद्ध आदि सबने स्वागत किया, सारे भारत ने स्वागत किया और विशेष तौर पर मुस्लिम भाइयों ने आगे बढ़कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय हमको स्वीकार्य हैं। विवाद की हल्की दिशा ने मुस्लिम भाइयों की यह भावना बहुत महत्वपूर्ण अर्थ रखती है, उन्होंने राम को मर्यादा का आराध्य माना और अब मर्यादा क्या कहती है इसका निर्धारण आज की सरकार को करना है। हम उस भावना के साथ हैं जिस भावना से वशीभूत होकर सारे हिन्दुस्तान ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अभिनंदन किया। कुछ अनर्गल स्वर हिंदुस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, उनकी तरफ ध्यान देकर हम अपना ही अनहित करेंगे। मेरी प्रभु राम से प्रार्थना है कि प्रभु भटके हुए लोगों को तो सन्मति दो ही दो, मगर जो लोग बढ़ चढ़कर अपने आपको आपका भक्त सिद्ध करने में लगे हुए हैं, चुनाव के विषाद को नजदीक देखकर आपको फिर से चुनाव का मुद्दा बनाना चाह रहे हैं, उनको भी सद्बुद्धि दीजिए। आप राजा हैं, आपको भक्त व प्रशंसक में अंतर नहीं करना पड़ेगा, कुछ लोग अपनी पूरी सामर्थ्य लगाकर अपने को एक मात्र प्रशंसक सिद्ध करने में लगे हुए हैं। भक्त तो आपके वह भी हैं जो इस बात की घोषणा कर रहे हैं जब प्रभु का बुलावा आएगा तो हम दर्शनों के लिए जाएंगे। भक्त वह भी हैं जो अपनी साधनहीनता के कारण अयोध्या नहीं पहुंच पाएंगे, मगर आप तो सबरी के राम हो, आप तो केवट के भी सखाराम हो, आप हनुमान की भी राम हो, आप विभीषण के विराम हो, आप तो घट-घट वासी राम हो, उन साधनहीन भक्तों का प्रणाम स्वीकार करिए और उन भक्तों का भी प्रणाम स्वीकार करिए, जो अन्यान्य कारणों से अयोध्या नहीं पहुंच पाएंगे।
दुनिया आपको मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अपने हृदय में पूजती है। भारत ने आपकी प्रेरणा से “रघुपति राघव राजा राम” के समूहगान के साथ आजादी प्राप्त की और उस कालखंड के आपके भक्तों ने एक सामुहिक मर्यादा ग्रंथ संविधान के रूप में अंगीकार किया। आज संवैधानिक मर्यादाएं राजनीतिक स्वार्थों के लिए टूट रही हैं, जो संस्थाएं लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़ी की गई आज उन संस्थाओं को सत्ता की चाबुक बनाया जा रहा है। तकनीक और धन, सत्ता, तीनों शक्तियों का उपयोग कर स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा का रोज चीर हरण हो रहा है। जिन संकल्पों और मर्यादाओं के नाम पर हमारे बुजुर्गों ने एक स्वर से संविधान अंगिकार किया, आज उसकी व्याख्याएं बदली जा रही हैं। प्रचार तंत्रों के हर स्तर का इस्तेमाल इस कार्य के लिए किया जा रहा है। प्रभु, करोड़ों हाथ आपकी तरफ जुड़े हुए हैं, क्योंकि हमारा मानना है आपका मंदिर तो दिल में था, अब वह मंदिर अयोध्या में भी स्थापित हो चुका है, उसी दिन स्थापित हो चुका है जिस दिन संविधान के व्याख्याकार सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। हमारे जुड़े हुये हाथ आपसे प्रार्थना कर रहे हैं कि आप तो न्याय के देवता है, न्याय करिए। हम किसी के लिए दंड की कामना नहीं कर रहे हैं क्योंकि क्षमाशीलता के आप मूर्तिमान स्वरूप हैं। क्षमा तो आप उनको भी करेंगे जो आपके नाम पर अपने स्वार्थों की राजनीति कर रहे हैं। मगर न्याय तो आपको करना पड़ेगा, रास्ता भी आप ही को दिखाना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि जो सृष्टि का रचयिता है, जिसने मर्यादा की रक्षा के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में मानव स्वरूप ग्रहण किया है, कुछ लोग अपने अहंकार में उसके भी रचनाकार बन जाएं। सृष्टि के रचनाकार के रचनाकार होने का दम भरने वाले लोगों को भी तो सही मर्यादित रास्ता भी आप ही बताएंगे, उनकी आंखों पर हुये स्वार्थ के पर्दे को भी तो आप ही हटाएंगे।
आपके राज्य को एक ऐसे राज्य के रूप में पहचाना जाता था जहां बाघ और बकरी भी एक ही घाट पर पानी पीते थे। ऊंच-नीच, गरीब-अमीर की भावना का कहीं लेश मात्र नहीं था। व्यक्ति अपने राजा पर भी टिप्पणी कर सकता था और राजा उसके विश्वास में खरा उतरने के लिए किसी सीमा तक भी तत्पर रहता था। लोग निर्भीकता से अपनी बात कहते थे, इसीलिये राम राज्य को सर्वोच्च लोकतंत्र माना गया है। आज भारत में स्थितियां पूर्णतः भिन्न हैं। सत्ता ही सत्य है, विपक्ष धर्म न होकर कर्म का फल बताया जा रहा है। राम राज्य में प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता भर काम पाता था और करता था, प्रत्येक नागरिक खुश था, आज आशंका ही आशंका है। बेरोजगारी और भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ रहे हैं। महिलाएं और दलित, अत्याचार का शिकार हो रहे हैं। नौजवान कुंठित है, गरीब और गरीब हो रहा है। देश की पूंजी का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, 10 प्रतिशत लोगों के हाथ में सीमित हो रहा है। अशांति, असहिष्णुता, हमारे जनजीवन का स्थाई भाव बनते जा रहा है। आज की मर्यादा की नियामक संसद एक ध्रुवीय होती जा रही है, न्यायिक व्यवस्था अपने बोझ से ढकी-ढकी दिखाई दे रही है। जिन नियामक संस्थाओं को संसद ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़ा किया वो संस्थाएं सत्ता की हाथ की मशीन बनकर रह गई हैं। अन्न दाता किसान और राष्ट्र निर्माता मजदूर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते-लड़ते खो से गये हैं। यह स्थिति आपके मंदिर की स्थापना के उल्लास के क्षणों में चिंता की रेखाओं की तरीके से कौंध रही हैं। संघीय व्यवस्था की बुनियादें चरमरा रही हैं। अशांत दुनिया में आपका ही स्वरूप शांति दाता के रूप में मार्ग प्रदर्शन करेगा, यह हमारा विश्वास है। शेष अर्जी लगाने अयोध्या आऊंगा।
।। बोलिए सिया बलरामचंद्र की जय।।