देहरादून,
उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने 27 दिसंबर से 31 दिसंबर तक शीतकाल चारधाम यात्रा की थी. इसके पीछे वजह शीतकाल चार धाम यात्रा को बढ़ावा देना भी माना जा रहा है।
हिंदू मान्यता के अनुसार शीतकाल के छह मास उत्तराखंड के चार धामों में देवता पूजा पाठ करते हैं। जिस वजह से बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धाम के कपाट बंद हो जाते हैं। इस दौरान मां गंगा उत्तरकाशी जिले के मुखवा गांव और यमुना मां खरसाली में विराजमान होती हैं।
बाबा केदार रूद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ और भगवान बदरी विशाल पांडुकेश्वर जोशीमठ चमोली में आ जाते हैं। जहां 6 माह शीतकाल में पूजा अर्चना होती है। यहां पर भी श्रद्धालु शीतकाल में भी इन स्थानों पर होने वाली पूजा-अर्चना में शामिल हो सकते हैं। लेकिन अभी तक कई बार पहल होने की वजह से भी शीतकाल चार धाम यात्रा परवान नहीं चढ़ी। इसके पीछे वजह संसाधनों की कमी और मौसम अनुकूल न होना भी है।
आजकल पहाड़ों में ठंड और बर्फ बहुत ज्यादा मिल जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चारोंधामों में शीतकाल में देवतागण पूजा करने आते हैं।
देखा जाय तो शीतकालीन यात्रा में पूजा और दर्शन आराम से हो जाते है हुए फल भी वही मिलता है
सर्दियों के दौरान भी उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शीतकालीन चार धाम सर्किट 2014 में शुरू किया गया था। साल भर चलने वाली चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए इन सभी शीतकालीन धामों के द्वार खुले रहेंगे । बाहरी राज्यों से आकर लोग शीतकाल में चारो धामों में पूजा कर रहे है..
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आदित्य डोभाल, देहरादून