कोठगी गांव में हुआ आयोजन, ग्रामीणों ने की सुख-समृद्धि की कामना
खिर्सू, खिर्सू ब्लॉक का पौराणिक कठबद्दी मेला धूमधाम के साथ मनाया गया। इस मौके पर एक रस्सी के लिए ग्रामीणों के बीच संघर्ष हुआ। यह रस्सी सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। मेले में लोग बड़ी संख्या में पहुंचे और क्षेत्र की सुख-समृद्धि व उन्नति की कामना की। इस वर्ष यह आयोजन कोठगी गांव में हुआ।
ग्रामीण महेंद्र नेगी, वीरेंद्र, जितेंद्र रावत ने बताया कि ग्वाड़, कठुली, चौबट्टा, बुदेशू, मेलचौरी, मरखोडा, पैंयापाणी, जोगडी, कोल्ठा आदि गांवों में मेले की तैयारियां एक सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है। ग्रामीण बबुले की घास से रस्सी तैयार करते हैं। इसी रस्सी के सहारे काठ (लकड़ी) के पुतले को ऊंचाई से कोठगी गांव तक करीब 200 मीटर तक नीचे सरकाया गया। बाद में रस्सी के लिए ग्रामीणों में संघर्ष होता है। यह रस्सी सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। बताया कि मेले में परंपरागत वाद्य यंत्रों व ढोल-दमाऊं के साथ घंटाकर्ण भैरव देवता की पूजा होती है।
यह है मान्यता
पौड़ी। मान्यता है कि भगवान बदरी को गांव के सबसे ऊंचे स्थान से सबसे नीचे के स्थान तक रस्सी के सहारे नीचे छोड़ा जाता था। इस परंपरा से गांव में सुख-समृद्धि व उन्नति प्राप्त होती है। खिर्सू ब्लॉक के करीब 10 से 12 गांवों में लोग पूरी तैयारियों के साथ इस मेले में शिरकत करते हैं। कहा जाता है कि किसी जमाने में रस्सी के सहारे काठ से बने एक घोड़े पर बेड़ा जाति के एक व्यक्ति को बैठा कर छोड़ा जाता था। काठ का घोड़ा उस व्यक्ति के साथ रस्सी के सहारे नीचे आ जाता था। कई बार इसमें उस व्यक्ति की जान का जोखिम भी होता था। समय के साथ यह परंपरा बदली और अब काठ से बने पुतले को रस्सी के सहारे लुढ़काया जाता है।