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बीमा कंपनी की अपील खारिज, दुर्घटना बीमा के देने होंगे 4.44 लाख रुपये

बीमा कंपनी की अपील खारिज, दुर्घटना बीमा के देने होंगे 4.44 लाख रुपये

 

देहरादून,
वाहन में ड्राइवर के साथ निशुल्क सफर कर रही एक महिला यात्री के आधार पर दुर्घटनाग्रस्त वाहन का बीमा अदा करने से इंकार कर रही युनाइटेड इंडिया इंश्यारेंस कंपनी की अपील राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में खारिज हो गई। आयेाग ने जिला उपभोक्ता फोरम के बीमा कंपनी को 4.46 लाख रुपये हर्जाना और पांच हजार रुपये वाद खर्च के रूप में देने के आदेश को बरकरार रखा है। हालांकि वाहन मालिक को 20 हजार रुपये मानसिक तनाव के रूप में देने और संपूर्ण राशि पर नौ प्रतिशत ब्याज लागू करने के फैसले को रद्द किया है। कंपनी को पीडित को नौ के बजाए छह प्रतिशत की दर से ब्याज चुकाने के आदेश दिए हैं।
मामला करीब आठ साल पहले सात जून 2016 का है। त्रिलोक सिंह के नाम पर दर्ज एक वाहन को भूपेंद्र सिंह रुद्रप्रयाग से देहरादून आ रहा था। रतनगढ़ के पास सुमनरी मयाली के पास एकाएक एक गाय के सामने आ जाने से चालक ने वाहन पर नियंत्रण खो दिया और वह खाई में गिर गई। इस में वाहन के परखच्चे उड़ गए। वाहन मालिक त्रिलोक ने जब बीमा कंपनी में क्लेम किया तो शुरूआती जांच के बाद कंपनी ने इंकार कर दिया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि उस वक्त वाहन में एक महिला यात्री भी सफर कर रही थी। कंपनी के नियमों के अनुसार वाहन में यात्री को नहीं बिठाया जा सकता। इस फैसले के खिलाफ त्रिलोक ने देहरादून जिला उपभोक्ता फोरम में केस दायर किया। जिला फोरम ने पीड़ित के तर्कों को सही मानते हुए 12 अक्टूबर 2022 को बीमा कंपनी को 4. 44 लाख रुपये, 20 हजार रुपये मानसिक तनाव और पांच हजार रुपये वाद खर्च के रूप में देने के आदेश दिए। इस सभी राशि को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ देने के आदेश दिए गए थे।
बीमा कंपनी ने जिला फोरम के आदेश के खिलाफ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में अपील दायर की। आयोग अध्यक्ष कुमकुम रानी और सदस्य बीएस मनराल ने इस मामले की सुनवाई की। पाया कि कि दुर्घटनाग्रस्त बीमा सुरक्षा के दायरे में था। उसकी क्षमता ड्राइवर समेत तीन यात्रियों की है। हादसे के बाद तत्काल ही इसकी एफआईआर करा दी गई थी। वाहन में सवार एक अन्य यात्री की मौजूदगी को बीमा क्लेम न देने का कोई आधार नहीं माना जा सकता। आयेाग आठ अगस्त 2024 को अपील पर दिए फैसले में केवल मानसिक तनाव के लिए तय की राशि देने के फैसले को निरस्त किया है। साथ ही नौ प्रतिशत ब्याज दर को छह प्रतिशत ही सही माना। बाकी राशि कंपनी को चुकानी होगी।

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