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पूर्व-राष्ट्रपति महामहिम  रामनाथ कोविन्द जी का श्री हरिहर आश्रम, कनखल में सपरिवार आध्यात्मिक प्रवास

“पूर्व-राष्ट्रपति महामहिम  रामनाथ कोविन्द जी का श्री हरिहर आश्रम, कनखल में सपरिवार आध्यात्मिक प्रवास !”

भारत की आद्यपीठ तथा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की गुरुगद्दी श्री हरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार में आज प्रातः भारतीय गणराज्य के पूर्व-राष्ट्रपति महामहिम श्रीमान रामनाथ कोविन्द जी का सपरिवार शुभागमन हुआ। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी आदरणीया श्रीमती सविता कोविन्द जी एवं सुपुत्री सुश्री स्वाती कोविन्द जी भी पधारीं।

इस विशेष आध्यात्मिक प्रवास में महामहिम जी ने आश्रम के परमाध्यक्ष श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ अनन्तश्रीविभूषित जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर पूज्यपाद श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज (“पूज्य प्रभुश्री जी”) के सान्निध्य में सिद्धिप्रदाता रुद्राक्षवृक्ष, भगवान मृत्युञ्जय महादेव एवं भगवान पारदेश्वर के सानिध्य में लोक-कल्याण की प्रार्थना की।

महामहिम को जूनापीठ की सनातन परम्परा, पंचदेव उपासना एवं देशव्यापी पारमार्थिक कार्यों की विस्तृत जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने “पूज्य प्रभुश्री जी” द्वारा संचालित सेवा-प्रकल्पों की सराहना की और भारतीय संस्कृति, मूल्यों एवं सनातन धर्म के संरक्षण हेतु हो रहे प्रयासों को अत्यंत प्रेरणास्पद बताया।

ज्ञातव्य है कि श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़ा परम्परा की आद्यपीठ है, जो कालगणना और संख्या की दृष्टि से भारत का सबसे प्राचीन और विराट संन्यासियों का समर्थ संगठन माना जाता है। कनखल स्थित श्री हरिहर आश्रम से लाखों नागा-संन्यासी दीक्षित होकर देशभर में लोकोपकारी कार्यों में संलग्न हैं। श्री हरिहर आश्रम वेदान्त, धर्म, योग और सेवा के विविध पहलुओं पर आधारित शिक्षा और अनुष्ठान का एक जीवन्त केन्द्र है।

आचार्यपीठ से संचालित हजारों आश्रम, शैक्षणिक संस्थान, चिकित्सालय तथा सेवा-प्रकल्प देशभर में सनातन धर्म की जीवनता को अक्षुण्ण बनाए हुए हैं। प्रस्थानत्रयी (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र एवं भगवद्गीता) का अध्ययन, अध्यापन तथा साधकों के लिए वैदिक शिक्षण निरंतर चलायमान है।

जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज
“पूज्य प्रभुश्री जी” का जीवन-ध्येय सनातन वैदिक धर्म का विश्वव्यापी प्रचार प्रसार, संन्यास परम्परा का संवर्धन, साधनहीन बंधु-भगिनियों की सेवा और सर्वत्र पारमार्थिक प्रवृत्तियों का विस्तार है।

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